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खुलासाः पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र के इस्तीफे का कुम्भ कनेक्शन! जानिए पूरा वाकिया इस रिपोर्ट में

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देहरादून। पूर्व सीएम और डोईवाला विधायक त्रिवेन्द्र सिंह रावत इन दिनों युवाओं को रक्तदान के लिए प्रेरित कर रहे है। उनकी अपील पर युवा भारी तादाद में रक्तदान शिविर में पहुंच कर ब्लड डोनेट कर रहे हैं। कोरोना के इस विकट समय में अस्पतालों में खून की कमी को दूर करने के लिए अब तक त्रिवेन्द्र सिंह की अगुवाई में अब तक 550 यूनिट ब्लड का कलेक्शन हो चुका है। मुख्यमंत्री पद की रस्साकसी से दूर त्रिवेन्द्र सिंह रावत जनता की बीच रह कर जनसेवा में लगे हुए हैं।

इधर प्रदेश में कोरोना के कहर के बीच एक बार फिर पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र रावत के इस्तीफे के कारणों को लेकर चर्चा चल रही हैं। सियासत के गलियारों में चर्चा है कि त्रिवेन्द्र रावत मुख्यमंत्री रहते तो कम से कम प्रदेश को कोरोना की इस भयंकर त्रासदी का सामना नहीं करना पड़ता।

पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र रावत शुरू से ही कोविड-19 को लेकर कठोर फैसले लिये जाने के हिमायती थे। मुख्यमंत्री रहते वे कुम्भ का आयोजन प्रतीकात्मक रूप में कराना चाहते थे। लेकिन ऐन हरिद्वार महाकुम्भ आयोजन से पहले भाजपा हाईकमान ने उनका इस्तीफा ले लिया। और तीरथ सिंह रावत को उत्तराखण्ड का नया मुख्यमंत्री बनाया गया। नए मुख्यमंत्री के नेतृत्व में दिव्य एवं भव्य कुम्भ का आयोजन किया गया।

सरकारी दावों के मुताबिक लाखों लोगों ने महाकुम्भ में डुबकी लगाई। लेकिन त्रिवेन्द्र रावत से इस्तीफा क्यों लिया गया यह साफ-साफ किसी को भी पता नहीं चला। हाल ही में देश के प्रतिष्ठित मीडिया पोर्टल एवं मैगजीन ‘द कारवां’ के अंग्रेजी अंक में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। मैगजीन के अनुसार क्योंकि त्रिवेंद्र सिंह रावत कुंभ को प्रतीकात्मक रखना चाहते थे इसलिए उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा। ‘द कारवां’ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार कुम्भ के आयोजन को लेकर प्रदेश सरकार और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् के बीच लगभग 3 सौ से अधिक छोटी बडी व औपचारिक व अनऔपचारिक मीटिंग हुई। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् कुम्भ को 2010 की तर्ज पर दिव्य और भव्य आयोजन के पक्ष में था, लेकिन तत्कालीन त्रिवेन्द्र सरकार कोरोना के चलते कुम्भ को प्रतीकात्मक रखना चाहते थे। उनकी यही कोशिश उनके इस्तीफे की वजह बनी।

द कारवां’ और उत्तराखण्ड से प्रकाशित आनलाइन पोर्टल ‘दस्तावेज’ की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार कुंभ को प्रतीकात्मक रखने के पक्ष में नहीं थी वह कुंभ को भव्य तौर पर आयोजित करना चाहती थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद भी चाहते थे कि कुंभ भव्य हो। क्योंकि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में कुंभ को सीमित करके बीजेपी हिंदुओं को नाराज नहीं करना चाहती थी। यहा तक की उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने भी उत्तराखंड के सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत के खिलाफ सीधे तोर से तो मोर्चा नही खोला, लेकिन संघ और बीजेपी के दिग्ज नेताओं के माध्यम से केंद्र में संदेश पहुंचाया कि कुम्भ को हर हाल में दिब्य और भव्य किया जाय। उनका मानना था कि उत्तर प्रदेश में भी एक बडी आबादी साधु संतों की है और उसे नाराज नहीं किया जा सकता है।

कारवा ने दावा किया है कि एक दर्जन से अधिक भारतीय जनता पार्टी के नेताओं, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंतों और हरिद्वार महाकुंभ से जुड़े विभिन्न अधिकारियों के साथ साक्षात्कार की एक श्रृंखला से पता चला है कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को मार्च 2021 में महाकुंभ पर जोर देने के लिए रातोंरात निकाल दिया गया था। कारवा ने अपने अपनी स्टोरी में बताया है कि कम से कम पांच महंत और दो भाजपा नेताओं ने पुष्टि की कि एबीएपी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उत्तराखंड के कुछ कैबिनेट मंत्री चाहते थे कि कि उत्तराखंड कोविड-19 प्रतिबंधों को ताक में रख कर महाकुंभ की “भाव्य” मेजबानी करे लेकिन त्रिवेंद्र का जोर त्योहार को “प्रतीकात्मक” रूप से मनाने पर था. महंतों के साथ बातचीत से यह भी पता चला है कि ज्योतिषों और तांत्रिकों द्वारा पंचाग की गणना के आधार पर कुंभ को 2021 में कराया गया वर्ना 12 साल में होने वाला यह कुंभ 2022 में होना तय था

‘द कारवां’ के अंग्रेजी अंक में दावा किया गया है कि दो दशक से अधिक का राजनीतिक अनुभव रखने वाले एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने मुझे बताया कि कोविड-19 महामारी के बीच में पूर्ण कुंभ की मेजबानी करना राजनीतिक और आर्थिक निर्णय था. वरिष्ठ नेता ने उस घटनाक्रम को भी उजागर किया जिसके कारण त्रिवेंद्र को हटाया गया. उन्होंने कहा, “कुंभ को इसलिए होने दिया गया क्योंकि अगले आठ महीने बाद उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं. चुनाव से ठीक एक साल पहले सहयोगियों को नाराज करने का कोई मतलब नहीं था.” सहयोगियों से वरिष्ठ नेता का तात्पर्य अखाड़ों से है जिनके उग्र साधुओं का हिंदी पट्टी के हिंदुओं पर व्यापक प्रभाव होता है. उन्होंने समझाया कि कुंभ को टालना अखाड़ों के महंतों के लिए कमाई और समर्थन का भारी नुकसान होता. इन महंतों की उत्तर प्रदेश की जनता के बीच भारी पहुंच है. उन्होंने कहा कि कुंभ का कुल कारोबार हजारों करोड़ रुपए का होता है.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने कहा कि 2019 में हुई एक बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्री रावत से कहा था कि महाकुंभ एक प्रतिष्ठित हिंदू त्योहार है और इसकी “तैयारियों को लेकर अखाड़ों को कोई परेशानी नहीं आनी चाहिए और बिना किसी “विवाद” के महाकुंभ का आयोजन होना चाहिए. बीजेपी के नेताओं और अखाड़ों के महंतों के साथ हुई बातचीत से पता चलता है कि रावत और अखाड़ों के बीच की तनातनी में रावत को अपनी गद्दी गंवानी पड़ी. बीजेपी के इन नेताओं और महंतों ने बीजेपी और आरएसएस के कोपभाजन बनने के डर से नाम न जाहिर करने की शर्त पर मुझसे बात की. जब मैंने उत्तराखंड बीजेपी के प्रवक्ता मुन्ना सिंह चैहान से पूछा कि क्या कुंभ के कारण पूर्व मुख्यमंत्री को किनारे कर दिया गया था, तो उन्होंने मुझसे कहा कि ऐसी आपकी “धारणा में दम हो सकता है”, और हो सकता है कि अखाड़ों ने इसको लेकर शिकायत की हो.

सरकारी संस्था कुंभ मेला बल के अनुसार, 14 जनवरी को शुरू होने से लेकर 27 अप्रैल को समाप्ती के बीच गंगा में पवित्र स्नान के लिए कुल 91 लाख तीर्थयात्री हरिद्वार आए. रिपोर्टों के अनुसार, शामिल हुए तीर्थयात्रियों में कम से कम 60 लाख लोग अप्रैल में एकत्र हुए. कुंभ का प्रमुख कार्यक्रम शाही स्नान 11 मार्च से शुरू होकर, जब भारत कोविड 19 संक्रमण की दूसरी लहर की चपेट में था, 27 अप्रैल तक, जब संक्रमण के मामलों में बेहिसाब बढ़ोतरी हो रही थी, 48 दिनों तक चला. 27 अप्रैल तक भारत में 360927 नए कोविड-19 मामले दर्ज किए गए थे. 12 अप्रैल को दूसरे शाही स्नान के दिन 35 लाख लोग एक ही दिन शहर में दाखिल हुए, यह चैंकाने वाला आंकड़ा है.

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि विशेषज्ञ और मीडिया कुंभ को सुपर-स्प्रेडर कह रहे हैं. पहले शाही स्नान के दिन 11 मार्च को उत्तराखंड में 69 मामले दर्ज किए गए थे. 27 अप्रैल तक कोविड-19 के नए मामले बढ़कर 5703 हो गए. 2 मई तक उत्तराखंड में भारत की कुल कोविड-19 मौतों का हिस्सा 2.73 प्रतिशत था जबकि यहां की आबादी देश की कुल आबादी का 0.8 प्रतिशत है. महाकुंभ ने उत्तराखंड में न केवल संक्रमण दर को बढ़ाया है बल्कि इसे देश के एक छोर से दूसरे छोर तक फैलाया भी है.

संक्रमण के फैलाव ने शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों दोनों को प्रभावित किया है. मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के ग्यारसपुर में कुंभ से लौटने वाले 61 में से 60 लोग यानी 99 प्रतिशत लोग कोविड-19 पॉजिटिव हो गए, जबकि ओडिशा के कटक शहर में कुंभ से लौटे 43 प्रतिशत लोग पॉजिटिव हुए. राज्य ने कुंभ से लौटने वाले कम से कम 11 अन्य पॉजिटिव मामले दर्ज किए. ओडिशा के एक छोटे से गांव ढालपुर में जब एक व्यक्ति महाकुंभ से बीमार होकर लौटा तो कोई भी उसका दाह संस्कार करने आगे नहीं आया. लेकिन दिल्ली सहित कई भारतीय राज्यों में कुंभ से संबंधित संक्रमणों का कोई डेटा नहीं है और इसलिए इसके प्रभाव को निर्धारित करने का कोई तरीका नहीं है.

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद या एबीएपी देश के सभी प्रमुख अखाड़ों का सर्वोच्च निकाय है. फिलहाल इसमें हिंदू संत, साधुओं और तांत्रिकों के 13 अखाड़े हैं. किन्नर अखाड़ा को अभी तक पूरी तरह से एबीएपी द्वारा मान्यता नहीं दी गई है. जूना अखाड़ा और निर्वाणी अखाड़ा दो सबसे बड़े और सबसे शक्तिशाली अखाड़े हैं. प्रत्येक अखाड़े का नेतृत्व एक महंत करता है, जिसे मोटे तौर पर मुख्य पुजारी या आध्यात्मिक सलाहकार कहा जाता है. निरंजनी अखाड़े के नरेंद्र गिरि एबीएपी के अध्यक्ष हैं, जबकि जूना अखाड़े के हरि गिरि इसके महामन्त्री. ऐसेटिक गेम्स रू साधू, अकाड़ा एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू वोट पुस्तक के लेखक धीरेंद्र झा के अनुसार, एबीएपी की स्थापना ही कुंभ त्योहार को करवाने के लिए हुई है. इसमें सभी अखाड़ों के प्रतिनिधि हैं जो संबंधित राज्य सरकारों के साथ-साथ कुंभ को कैसे और कब आयोजित किया जाएगा इस पर विचार करते हैं.

जूना अखाड़े के प्रवक्ता नारायण गिरी ने बताया कि उन्होंने कुंभ की तैयारियों से संबंधित कम से कम 50 बैठकों में भाग लिया और उन्हें यह स्पष्ट हो गया था कि “सरकार कुंभ मेले को स्थगित करने की कोशिश कर रही थी.” नारायण ने कहा कि बाद में, “दिसंबर 2020 और जनवरी 2021 में हुई बैठकों में हमें बताया गया कि कुंभ प्रतीकात्मक होगा.” बीजेपी के वरिष्ठ नेता, जो इन चर्चाओं के बारे में जानते हैं, ने मुझे बताया कि त्रिवेंद्र ने जोर देकर कहा था कि कुंभ को सीमित रखा जाए. नेता ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री ने सभी अखाड़ों को लिखित रूप में अपनी सहमति देने के लिए कहा था कि उन्हें उत्तराखंड सरकार द्वारा सीमित रूप में कुंभ की मेजबानी को लेकर कोई आपत्ति नहीं है ताकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारीे मानक संचालन प्रक्रिया का अनुपालन हो सके. कंभ मेला के इतिहास में पहली बार यह भी प्रस्तावित किया गया था कि प्रवेश करने वाले श्रद्धालुओं को कोविड-19 नेगेटिव रिपोर्ट के आधार पर एंट्री पास जारी किए जाएंगे. लेकिन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में आरएसएस और बीजेपी के ऊपर दौंस रखने वाले अखाड़ों की जीत हुई. नारायण ने कहा, “पिछले मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा था कि कुंभ मेले के दौरान कोरोनोवायरस नियमों का पालन किया जाना चाहिए लेकिन जब तक कुंभ शुरू होता तब तक मुख्यमंत्री को बदल दिया गया.”

नारायण ने कहा कि बाद में, “दिसंबर 2020 और जनवरी 2021 में हुई बैठकों में हमें बताया गया कि कुंभ प्रतीकात्मक होगा.” बीजेपी के वरिष्ठ नेता, जो इन चर्चाओं के बारे में जानते हैं, ने मुझे बताया कि त्रिवेंद्र ने जोर देकर कहा था कि कुंभ को सीमित रखा जाए. नेता ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री ने सभी अखाड़ों को लिखित रूप में अपनी सहमति देने के लिए कहा था कि उन्हें उत्तराखंड सरकार द्वारा सीमित रूप में कुंभ की मेजबानी को लेकर कोई आपत्ति नहीं है ताकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारीे मानक संचालन प्रक्रिया का अनुपालन हो सके. कंभ मेला के इतिहास में पहली बार यह भी प्रस्तावित किया गया था कि प्रवेश करने वाले श्रद्धालुओं को कोविड-19 नेगेटिव रिपोर्ट के आधार पर एंट्री पास जारी किए जाएंगे. लेकिन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में आरएसएस और बीजेपी के ऊपर दौंस रखने वाले अखाड़ों की जीत हुई. नारायण ने कहा, “पिछले मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा था कि कुंभ मेले के दौरान कोरोनोवायरस नियमों का पालन किया जाना चाहिए लेकिन जब तक कुंभ शुरू होता तब तक मुख्यमंत्री को बदल दिया गया.”

त्रिवेंद्र का जन्म और पालन पोषण उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में हुआ. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ, राष्ट्रीय-सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और भारत के रक्षा प्रमुख बिपिन रावत एक ही जिले से हैं. त्रिवेंद्र 1979 से 2002 तक आरएसएस के सदस्य रहे और 2000 में राज्य गठन के बाद उत्तराखंड क्षेत्र और बाद में उत्तराखंड राज्य के संगठन सचिव पद पर रहे. त्रिवेंद्र के करियर से परिचित वरिष्ठ आरएसएस नेताओं ने मुझे बताया कि 2000 में जब नरेन्द्र मोदी उत्तराखंड के प्रभारी नियुक्त बने तो उन्होंने ने त्रिवेंद्र को उनकी इच्छा के विरुद्ध डोईवाला निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए कहा. इस सीट पर त्रिवेंद्र 2017 तक काबिज रहे. उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनावें में त्रिवेंद्र ने वर्तमान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के डिप्टी के रूप में भी काम किया था.

त्रिवेंद्र का निष्कासन तीन दिनों तक चले बड़े राजनीतिक नाटक के रूप में देखा गया. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, 6 मार्च 2021 को बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह और बीजेपी के उत्तराखंड प्रभारी महासचिव दुष्यंत सिंह गौतम बिना किसी पूर्व घोषणा के देहरादून आए. उन्होंने कहा कि जब गैरसैंड सदन में राज्य विधानसभा का बजट सत्र चल रहा था त्रिवेंद्र को तत्काल वरिष्ठ नेताओं द्वारा देहरादून बुलाया गया. आमतौर पर सड़क मार्ग से गैरसैंड और देहरादून के बीच की 250 की किलोमीटर की दूरी को तय करने में कम से कम सात घंटे लगते हैं. इस घटना के चश्मदीद रहे बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने बताया, क्योंकि त्रिवेंद्र तलब किए थे इसलिए वह एक विशेष हेलिकॉप्टर पर सवार होकर आधे घंटे के भीतर अपने आवास पहुंचे.

बीजेपी नेता ने कहा कि आधे घंटे की बैठक में त्रिवेंद्र को बताया गया कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा उनसे मिलना चाहते हैं. बीजेपी नेता ने मुझे बताया, “मुख्यमंत्री निवास पर रमन सिंह और दुष्यंत गौतम को चाय पिलाते वक्त व्याकुल रावत को यह स्पष्ट हो गया था उनकी ‘बदली’ होने वाली है.” अगले दिन देर शाम त्रिवेंद्र दिल्ली आए और बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव नड्डा और बीएल संतोष से मिले, जो आरएसएस और बीजेपी के बीच सेतु की तरह हैं. बीजेपी नेता ने मुझे बताया कि यह मुलाकात दिल्ली स्थित नड्डा के आवास पर हुई थी. उन्होंने कहा कि नड्डा और संतोष ने त्रिवेंद्र को सूचित किया कि बीजेपी उनके नेतृत्व में 2022 में आगामी चुनावों में नहीं उतरेगी. यह इस्तीफा दे देने का इशारा था. “इस बारे में कोई चर्चा नहीं की गई थी कि कौन उनकी जगह लेगा.” नेता ने बताया कि त्रिवेंद्र से मिलने से पहले नड्डा ने शाह से मुलाकात की थी. न तो नड्डा और न ही संतोष ने कॉल या ईमेल का जवाब दिया.

9 मार्च को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में चार साल पूरे करने से कुछ दिन पहले त्रिवेंद्र ने इस्तीफा दे दिया. अचानक इस्तीफा देने के पीछे का कारण पूछे जाने पर उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “आपको यह जानने के लिए कि ऐसा क्यों हुआ, दिल्ली जाना होगा.”

बीजेपी के वरिष्ठ नेता, जो इन कदमों से अवगत थे, ने मुझसे कहा, “राष्ट्रीय दैनिकों ने उनके इस्तीफे की खबर को फ्रंट पेज पर छापा. कई ने उनकी जगह लेने वाले संभावितों का नाम भी लिया लेकिन उनमें से कोई भी न तो उनकी जगह लेने वाले और न ही उनके इस्तेफे के कारण का अंदाजा लगा पाया.” प्रिंट ने सुझाव दिया था कि “रावत की जगह पर रावत को लाया जाएगा?” लेकिन तीरथ के नाम का उल्लेख नहीं किया था. हिंदुस्तान टाइम्स ने धन सिंह रावत, अनिल बलूनी और अजय भट्ट को इस दौड़ में शामिल बताया, लेकिन उनमें से कोई नहीं बना. आखिरकार 11 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन निर्धारित पहले शाही स्नान से ठीक एक दिन पहले त्रिवेंद्र की जगह पर तीरथ को लाया गया.

त्रिवेन्द्र अडिग रहे अपने फैसले पर

आज पूरा देश कोरोना संक्रमण से जूझ रहा है। कोरोना संक्रमण के मामलों में उत्तराखण्ड पहले पांच राज्यों में शुमार हो गया है। शहर से लेकर दूरस्थ गांव के लोग कोरोना से त्रस्त है। जानकार बताते हैं की उत्तराखण्ड में कुम्भ मेला कोरोना का सुपर स्प्रेडर साबित हुआ है। सरकारों के पास कोरोना से लड़ने के लिए कोई कारगर नीति नहीं है। व्यवस्थाएं चैपट हो चुकी हैं। ऐसे हालातों में पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र रावत का कुम्भ का प्रतीकात्मक रखने का दूरदर्शी फैसला प्रदेश को कोरोना की इस भयंकर त्रासदी से बचा सकता था।

पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत हमेशा अपने कठोर फैसलों के लिए जाने जाते रहे हैं। वे इसको लेकर हमेशा अपने आलोचकों के निशाने पर भी रहते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर उन्होंने ये तो बता दिया कि लोकहित उनके लिए हमेशा पहले है।

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