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जैसी संगत वैसी रंगत, नशे को लेकर सर्वे में आया चौंकाने वाले तथ्य

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सिगरेट तबाम्कू, गुटखा, अल्कोहल का सेवन करने वाला भी कभी यह नहीं चाहेगा कि उसका बच्चा अथवा इम्प्लाई इसका प्रयोग करे। यह समस्या बचपन से सम्बंधित है। इसलिए माई स्कूल इज एडिक्शन फ्री स्कूल, माई काॅलेज इज एडिक्शन फ्री काॅलेज का अभियान चलाना चाहिए, एडवर्टजाइजमेंट देना चाहिए। इससे सम्बंधित जागरूकता, अवेयरनेस कार्यक्रम का पहल स्वयं बच्चों द्वारा किया जाना चाहिए। इससे सम्बंधित डिबेट, भाषण इत्यादि कार्यक्रम का संचालन करना चाहिए। धुम्रपान निषेध और सौ मीटर के परिधि के अंदर नशा सम्बंधित दुकानें प्रतिबंधित होगी, इस प्रकार गेट पर बोर्ड लगने चाहिए। इसे जन आंदोलन बनाना होगा।

मनोज श्रीवास्तव

पार्टी में प्रेशर डाला गया कि अल्कोहल ले लें। इच्छा न होने पर भी दूसरों को खुश करने के उददेश्य से अल्कोहल ले लिया गया। धीरे-धीरे पार्टी रोज होने लगी और अल्कोहल लेने का क्रम बढता गया। धीरे-धीरे काम का प्रेशर बढता गया और अल्कोहल पीने का बहाना बढता गया। अल्कोहल न लेने वाला व्यक्ति अपने अंतर आत्मा की आवाज को दबाकर अल्कोहल लेना शुरू कर देता है। जिसके बाद बच्चा डिप्रेशन में आ जाता है। अथार्त वह व्यक्ति जो नहीं करना चाहता वह करता है, जो करना चाहता है वह नहीं कर पाता है। इच्छा शक्ति का आभाव ही हमें अल्कोहल लेने पर मजबूर कर देता है।

नेशनल कमीशन चाइल्ड राइटस के अधीन चलाये जाने वाले प्रोजेक्ट मुम्बई के डाक्टर सचिन ने एक सर्वे में पाया गया कि 90 प्रतिशत तम्बाकू, सिगरेट और गुटखा प्रारंभ करने की उम्र बच्चों की उम्र 12 वर्ष होती है। शेष 12 से 15 वर्ष के बीच में तम्बाकू, गुटखा, सिगरेट लेने आरंभ करते है। अथार्त कक्षा 7वीं से 10वीं तक के बच्चे नाजुक उम्र के पडाव में एडिक्शन के शिकार हो जाते है।
भारत के 27 राज्यों में 4000 बच्चों पर किये गये सर्वे रिपोर्ट में पाया कि इन्हें एडिक्शन की लत दोस्तों के दबाव में लगी। लोग अंदर से नो करने में कमजोर होते है, जिसके कारण न चाहते हुये वे दबाव में आते है। कोई बच्चा शुरूआत में नशा नहीं करता है, लेकिन मूवी, एडवर्टटाइजमेंट के प्रभाव से प्रभावित रहता है, इसी बीच उसको दोस्त भी आॅफर कर देते है।

उनके दोस्त कहते हैं कि यदि तू मेरा सच्चा दोस्त होगा तो जरूर लेगा। तुझे मेरी दोस्ती की कसम, तू यह ले ले। मेरे लिये ले ले। तूने मुझे कंपनी नही दी तब आज से तुम्हारी-हमारी दोस्ती खत्म। दोस्ती का प्रभाव अथवा प्रियर प्रेसर, इस उम्र में ज्यादा असरकारक होता है। बचपन से जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही शरीर और भावनाओं में अनेक प्रकार का परिवर्तन और आकर्षण पैदा होता है।

इनके ऊपर हम उम्र के ग्रुप का प्रेसर बना रहता है। इनकी हेयर स्टाइल, एक जैसे कपडे, एक जैसी मूवी की पसंद वह दबाव होती है जिसके कारण यह अपना ग्रुप छोडना नहीं चाहते। इनके ऊपर दोस्ती का इतना दबाव होता है कि गलत कार्य जानते हुये भी यह करने लगते है। हालांकि प्रारंभ में न करते हुये कहते है मम्मी-पापा, टीचर को पता लगा तो क्या कहेंगे। जवाब मिलता है मैंने किया किसी को पता लगा। मैं कर रहा हूं किसी को पता चल रहा है।

फिर भी वह लडका न कहता है तब उसको अंत में कह दिया जाता है कि तू तो लडकी ही रहेगा। तेरे बसका कुछ नहीं है। इससे उसका ईगो हर्ट हो जाता है। क्योंकि हमारे समाज की यह गलत बिलिफ सिस्टम मान्यता है कि लडकी अथार्त कमजोर। इसके दबाव में वह एडिक्शन के बंधन में आ जाता है। इसके पहले उसको कई प्रकार के भावनात्मक दबाव डाले जाते है। जैसे मर्द को दर्द नहीं होता है। इसी बीच में मूवी के प्रभाव में वह बच्चा धुआं उडाते हुये अपने रोल माॅडल अमिताभ और शाहरूख को भी देखता है। गाना सुनता है हर फीक्र को धुएं में उडाता चला गया। धुआं उडाते में कम्प्टीशन चलने लगता है। एक सिगरेट बंद होती है दूसरा जल जाता है।

प्रश्न है कि क्या हमें प्रियर प्रेसर या दोस्तों के दबाव में आ जाना चाहिए। यह सही है कि हमे समाज ओर दोस्तों के बीच में ही रहना है। इसलिए उनका इफेक्ट हमारे ऊपर न पडे बल्कि हमारा इफेक्ट उनके ऊपर पडे। यह प्रयास करना चाहिए। यदि कोई गुटखा, सिगरेट देता है तो दोस्ती न तोडे बल्कि अच्छा दोस्त वह होता है जो गलत दोस्त को सही रास्ते पर लाये। यह दोस्ती तोड देंगे तो दोस्त कैसे हुये। हमे अपनी जिम्मेदारी समझकर अपने दोस्त को समझाना भी है और सही रास्ते पर लाना है। न कि स्वयं उनके साथ गलत रास्ते पर निकल जाना है।

हमारा तर्क होगा कि एडिक्शन को छोडकर तुम्हारे लिये अन्य जगह सहयोगी बनूंगा। इसलिए सीधा नो नही कहना चाहिए। बल्कि युक्ति से मुक्ति पाना चाहिए। इसका विकल्प ले लें। चाॅकलेट, जूस इत्यादि दोस्तों का मन रखने के लिए ले सकते है अथवा शरीर की एलर्जी का बहाना बना सकते है।
हमे दृढता पूर्वक मना करना है लेकिन दृढता के साथ विनम्रता होना जरूरी है और विनम्रता के साथ तार्किकता का होना जरूरी है। सत्यता के साथ सभ्यता का होना जरूरी है। सत्य बात सभ्यता से कहें, उजढता से नही।

इसमें स्ट्रेस मैनेजमेंट की टैक्नीक राजयोग मैडिटेशन कारगर उपाय है। राजयोग से अंदर बहुत विशेषताओं का जन्म होता है। हमारे अंदर एक शक्ति आती है, जिससे हम किसी बात को दृढता पूर्वक मना कर सकते हैं। इससे हमारे अंदर स्वमान, सेल्फ रिस्पेक्ट जागृत होता है और न कहने की युक्ति का पता चल जाता है। यह एक प्रकार का साइलेंस हैं, जहां सभी प्रकार का समाधान स्वतः मिलता है। हमे किसी बात को न कहने के लिए धैर्यता का गुण चाहिए। जो मैडिटेशन से आता है। मैडिटेशन के प्रभाव से हमें अपनी प्राथमिकता को सेट करना आ जाता है। हमे यह पता चल जाता है कि हमारे लिए क्या फायदा है और क्या नुकसान। अर्थात् हमारे भीतर परखने और निर्णय करने की शक्ति आ जाती है। मैडिटेशन हमें पाॅजीटिव रहना सिखाता है। इसके प्रभाव से लोग हमारे सामने सरेंडर हो जाते है।

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