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उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कवि से खास बातचीत

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उत्तराखण्ड में कर्मचारी आंदोलन का एक लम्बा इतिहास रहा है। जब-जब कर्मचारियों की सत्ता ने अनसुनी की है कर्मचारीं संगठन एक आवाज में खड़े हुए हैं। इन दिनों उत्तराखण्ड में विभिन्न संगठन अपनी मांगों को लेकर आंदोलन पर है। इन्ही संगठनों में एक है उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन है जो लम्बे समय से उपनल कर्मचारियों के हितों की लड़ाई लड़ रहा है। ऊर्जा से जुड़ेे उपनल कर्मचारियों की मुख्य क्या मांगें हैे? तथा उनकी लड़ाई क्या है? इस विषय पर रिपब्लिक संदेश डाॅट काॅम ने उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष विनोद कवि से विस्तृत चर्चा की। पेश है इस चर्चा के अंश।

रिपब्लिक संदेशः आपकी असल लड़ाई क्या है और किसने खिलाफ है?
विनोद कविः हमारी लड़ाई गैर-बराबरी के खिलाफ है। ऊर्जा से जुड़े तीनों संस्थाओं में उपनल के जरिए तकरीबन पांच हजार कर्मचारी संविदा पर काम करते हैं। ये कर्मचारी तकरीबन 15 से 20 सालों से प्रदेश को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। हमारी मांग है कि इन कर्मचारियों का नियमितीकरण हो। कर्मचारियों को समान काम के लिए समान वेतन हो। महंगाई को देखते हुए महंगाई भत्ता दिया जाए।

रिपब्लिक संदेशः लेकिन इसमें अड़चन क्या है?

विनोद कविः इसमें सरकार और निगम प्रबंधन की इच्छाशक्ति की कमी ही सबसे बड़ी अड़चन है। सरकार और प्रबंधन शासनादेश की आड़ लेकर संविदा कर्मचारियों को उनका बाजिब हक देने से वंचित कर रही है। जबकि प्रदेश के तमाम दूसरे विभागों में उपनल कर्मचारियों का नियमितीकरण हुआ है। व शासनादेश इतर वेतन दिया जा रहा है। ऐसे में शासनादेश को आधार बनाकर विद्युत संविदा कर्मियों का नियमितीकरण ना करना गले से नहीं उतरता। साफ है सरकार और प्रबंधन ऊर्जा संविदा कर्मियों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है।

रिपब्लिक संदेशः कर्मचारियों को हक दिलाने के लिए आपका संगठन कोर्ट की शरण में भी जा चुका है? इससे कर्मचारी हित में क्या फैसले सामने आए हैं?

विनोद कविः आंदोलन के साथ-साथ कर्मचारियों को उनका वाजिब हक दिलाने के लिए संगठन कोर्ट के दरवाजे तक भी गया है। विनोद कवि व अन्य बनाम उत्तराखण्ड पावर कारपोरेशन के फैसले से राज्य के हजारों संविदा कर्मियों के लिए बड़ी उम्मीद जगी है। इस केस के फैसले में संविदाकर्मियों के लिए भी समान कार्य के लिए समान वेतन दिये जाने का फैसला दिया है। जो वर्तमान में लागू भी है तथा ये फैसला एक नजीर के रूप में देखा जा रहा है।

रिपब्लिक संदेशः शासनादेश में ऐसा क्या जिसके आगे सरकार और प्रबन्धन कोर्ट के आदेशों के बावजूद भी अपनी मजबूरी जता रहा है।

विनोद कविः वैसे तो उत्तराखण्ड शासन व निगम प्रबन्धन यही कहता रहता है कि उपनल कर्मचारियों को शासनादेश के अनुसार ही वेतनमान देय होता है जो कि अपने आप में विरोधाभास है। हमने सूचना के अधिकार के तहत उपनल कर्मियों से सम्बन्धित जो सूचनाएं मांगी हैं, उससे खुलासा हुआ है कि प्रदेश में कम से कम 10 से 15 ऐसे विभाग/निगम है जहां शासनादेश से इतर उपनल संविदा कर्मचारियों का नियमितीकरण हुआ है और उनको नियत वेतनमान दिया जा रहा है।
हमारी सरकार से यही मांग है कि जिस नियम के तहत उद्यान एवं रेशम विभाग और उत्तराखण्ड विधान सभा में जैसे तमाम विभागों में कार्यरत उपनल संविदा कार्मिकों का नियमितीकरण हुआ है उसी नियम के तहत अन्य विभागो में 15-15 सालों से कार्यरत उपनल संविदा कर्मचारियों का नियमितीकरण किया जाय।

रिपब्लिक संदेशः उपनल संविदाकर्मियों को लेकर लेबर कोर्ट और हाईकोर्ट ने जो फैसला दिया है इस पर सरकार और निगम प्रबंधन का अब क्या रुख है?

विनोद कविः अभी सरकार और निगम प्रशासन अड़ियल रुख अपनाये हुए है। सरकार और निगम प्रबंधन लेबर कोर्ट के आदेशों को लागू करने की बजाय इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में चला गया है। मजेदार बात ये है विनोद कवि व अन्य बनाम उत्तराखण्ड पावर कारपोरेशन लि० मामले में हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्णय का आधा-अधूरा पालन भी हो रहा है। मा० उच्च न्यायालय ने 15 जनवरी 2021 को आदेश देते हुए साफ कहा है कि ऊर्जा निगमों के प्रबन्धन निदेशक संविदा कर्मियों के नियमितीकरण व समान वेतन के सम्बन्ध में विधि अनुसार फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन इस पर भी प्रबंधन चुप्पी साधे हुए है।

रिपब्लिक संदेशः एक अन्य मामला कुंदन सिंह बनाम उत्तराखण्ड सरकार सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है?

विनोद कविः हां, 2018 में उच्च न्यायालय में एक संविदा कर्मी ने नियमितीकरण व समान वेतन सहित विभिन्न बिन्दुओं पर जनहित याचिका दायर की थी, जिसे मा० उच्च न्यायालय ने न केवल सुना बल्कि निर्णय देते हुए राज्य सरकार को निर्देश पारित किये कि आदेश की तिथि से एक वर्ष के भीतर प्रदेश भर में उपनल के माध्यम से कार्यरत संविदा कार्मिको के नियमितीकरण के लिए नियमावली तैयार करें तथा आदेश के छः माह के भीतर समान कार्य के लिए समान वेतन बगैर किसी जी०एस०टी० के कटौती के देना सुनिश्चित करें।
लेकिन दुर्भाग्य से कोर्ट के इस फैसले के विरूद्ध राज्य सरकार 2019 में सुप्रीमकोर्ट चली गई, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे कर दिया। इस केस को मजबूती देने व निर्णय पारित होने में उत्तराखण्ड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन केस से जुडे कई तथ्यों को आधार बनाया गया है। संगठन ने सुप्रीमकोर्ट में चल रहे इस केस में इन्टरवेन्शल अर्जी दाखिल की है। जिस पर शीघ्र ही सकारात्मक निर्णय आने की उम्मीद है।

रिपब्लिक संदेशः आपके नेतृत्व में संगठन ने विद्युत उपनलकर्मियो को हक दिलाने को तमाम आंदोलन किए, आन्दोलन के अनुभव जो साझा करना चाहते हो?

विनोद कविः निश्चित रूप से संगठन ने आन्दोलन से कुछ न कुछ सीखा है। ये मैं इस लिए कह रहा हूं कि आज उपनल के कई सारे संगठन बन गये हैं। 2010-2013 के दौर में कम ही संगठन थे जो उपनल कर्मियों की पीड़ा को महसूस करते थे और आन्दोलन करने की हिम्मत जुटा पाते थे।
उस दौर में भी उत्तराखण्ड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन ने उपनलकर्मियों की वाजिब मांगों को लेकर आंदोलन किए। आन्दोलन के दौरान कई बार प्रशासन ने लाठी भांजी और जेल भेजा भी भेजा। लेकिन संगठन उपनलकर्मियों के वाजिब मांगों को लेकर कभी थका नहीं, टूटा नहीं। हमने सब कुछ सहन किया। 2013 में आन्दोलन जब अपने चरम पर था तब शासन प्रशासन ने आन्दोलन को कुचलने का एक ऐसा कुचक्र रचा जो जीवन भर याद रहेगा।

रिपब्लिक संदेशः ऐसा क्या हुआ उस आंदोलन में?

विनोद कविः 2013 में परेड ग्राउंड, देहरादून स्थित धरनास्थल से सभी आन्दोलनकारियों को दंगा नियंत्रण गाडियों में भरकर अलग-अलग स्थानों पर छोड़ा गया था। जिनमें से 60 से आन्दोलनकारियों को जिसमें मै स्वयं भी था और मेरे साथ मेरे अध्यक्ष व महामंत्री को भी हरिद्वार रोशनाबाद स्थित कारागार में 10 दिन तक जेल में बन्द कर दिया गया था। प्रशासन की पूरी कोशिश थी कि आंदोलन टूट जाए, लेकिन संगठन के क्रान्तिकारी आन्दोलनकारी साथियों ने आन्दोलन को टूटने नहीं दिया।
हरिद्वार रोशनाबाद जेल में सभी आन्दोलनकारियों ने जेल के अन्दर निर्णय लिया कि जब तक हमारी मांगांे पर सरकार विचार नहीं करती है तब तक सभी साथी अनशन पर रहेंगे और हम सभी 10 दिनांे तक भूख-हड़ताल पर रहे। इस दौरान कई साथियों को स्वास्थ्य की दिक्कतें आयी लेकिन कोई भी अपने इरादे से नहीं डिगा। जेल प्रशासन हर स्तर से दबाव बनाने का प्रयास करता रहा है लेकिन नाकामयाब रहा।

रिपब्लिक संदेशः लेबर कोर्ट से ऊर्जा से जुडे संविदा कर्मियों के पक्ष में क्या निर्णय आया था

विनोद कविः मा0 श्रम न्यायालय ने ऊर्जा निगमों और उपनल के बीच के अनुबन्ध को फर्जी पाया व आदेश पारित किये कि यूपीसीएल, यूजेविएनएल व पिटकुल में जो लोग उपनल के द्वारा कार्य कर रहे हैं वो सीधे विभाग के दैनिक वेतन भोगी है अतः इन्हें नियमितिकरण नियमावली 2011 के तहत नियमित किया जाए, जो लोग नियमितिकरण के दायरे में नहीं आ रहे हैं उन्हें 14.08.2014 से समान कार्य के लिए समान वेतन, मंहगाई भत्ते सहित दिया जाए आदि फैसला दिया गया था लेकिन सरकार लेबर कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट चली गई जहां केस की सुनवाई लगातार जारी है, संगठन को संविदा कर्मचारियों के पक्ष में सकारात्मक निर्णय आने की उम्मीद है।

रिपब्लिक संदेशः अभी हाल में धामी सरकार ने अलग ऊर्जा मंत्री नियुक्त किया है, शायद प्रदेश में पहली बार ऊर्जा विभाग को अलग मंत्री मिला है, डा० हरक सिंह रावत को जिम्मेदारी मिली है क्या उम्मीद करते हैं आप?

विनोद कविः पूरा प्रदेश मंत्री के तौर पर डा० हरक सिंह रावत के साहसिक निर्णयों से परिचित हैं। ये ऊर्जा निगम कर्मचारियाध्अधिकारियां का सौभाग्य है कि प्रदेश को पहले पूर्णकालिक ऊर्जा मंत्री के रूप में डा० हरक सिंह रावत को इसकी जिम्मेदारी मिली है। निश्चित तौर पर कर्मचारियों में खुशी का माहौल है विशेषकर ऊर्जा से जुड़े तीनों निगमों में उपनल के माध्यम से कार्योजित श्रमिकों में एक उम्मीद जगी है। अब कर्मचारी संगठन अपनी बात सीधे मंत्री तक पहुंचा सकते हैं। ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत उपनल संविदा कर्मचारियों की मांगों व कोर्ट के फैसलों से भली भांति परिचित है और उनकी अध्यक्षता में संविदा कर्मचारियों के स्थाई समाधान हेतु जो समिति बनी है निश्चित रूप से संविदा कर्मचारी हित में निर्णय लेगी। उम्मीद है कि अब विद्युत संविदा कर्मचारियों के साथ न्याय होगा।

रिपब्लिक संदेशः उपनल संविदा कर्मचारियों के लिए ऊर्जा मंत्री डॉ0 हरक सिंह रावत जी की अध्यक्ष में गठित कैबिनेट उपसमिति से क्या उम्मीद है कोई ऐसी बात जो आप कैबिनेट उपसमित के सदस्यों तक पंहुचाना चाहते हो?

विनोद कविः प्रदेश के नवनियुक्त मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी का धन्यवाद कि उन्होंने संविदा कर्मचारियों की समस्याओं के समाधान के लिए कैबिनेट उपसमिति का गठन किया है और उपसमिति के सभी सदस्य संविदा कर्मचारियों की पीडा से भलीभांति परिचित है। संगठन को पूरा विश्वास है कि उपसमिति हर पहलुओं को ध्यान में रखकर न्याय करेगी। मेरा उपसमिति के सभी सदस्यों से आपके माध्यम से निवेदन है कि समिति संविदा कर्मचारियों के नियमितिकरण व समान वेतन अर्थात स्थाई समाधान की दिशा सकारात्मक कदम बढायें ताकि वर्षों से निगमों में कार्यरत कर्मचारियों को इसका लाभ मिले, कुछ प्रतिशत वेतन बढोत्तरी तात्कालिक लाभ तो दे सकती है लेकिन यह कोई स्थाई समाधान नहीं है, कोर्ट के आदेशों के आलोक में नियमित किया जाना सम्भव है बस सरकार की मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है और शायद इसी में सबका हित समाहित है।

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1 COMMENT

  1. मनीष पाण्डेय ,सदस्य (उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन)

    उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन एवं उनके परिवार की ओर से रिपब्लिक संदेश का आभार आपके द्वारा हमारी मांगों एवं हमारे संगठन के नजरिए को प्रमुखता से रखा गया आशा करते हैं भविष्य में भी आपके द्वारा हम सभी संविदा कर्मियों की पीड़ा,मांगो ,मुद्दों, शोषण एवं उत्पीड़न के विषय को भी प्रमुखता से रखा जायेगा

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